Monday, March 18, 2019

उत्तराखंड फिल्म जगत को सरकार और कलाकार दोनों के सहारे की जरूरत


कहा जाता है की फिल्मे समाज का आइना होती है  मतलब हमारा समाज जैसा है वैसी ही फिल्म होती है या फिर समाज फिल्मो का अनुशरण करता है l वही दूसरी तरफ कहा जाता है कि फिल्मो से समाज बनता और बिगड़ता है यानी फिल्मो जैंसी होती है समाज भी उन्ही कदमो पर चलता है हम जैसा फिल्मों में देखते हैं वैसा ही करने या बनने की कोशिश करते है। इस का तात्पर्य है कि हम फिल्मों के माध्यम से अपनी कला, संस्कृति, बोली भाषा को जिन्दा रख सकते हैं तथा समाज को एक सूत्र में बाँध कर भी रख रकते हैं l
आज हर राज्य की तरह उत्तराखंड राज्य में भी गढ़वाली कुमाउनी या जौनसारी फिल्म एवं संगीत छेत्र में भरपूर काम हुआ है l गढ़वाली कुमाउनी फिल्मों का निर्माण का दौर वर्ष 1983 से शुरू हुआ और २ दशक तक काफी फिल्मे बनी और हिट रहीं l  लेकिन धीरे धीरे फिल्मों का निर्माण न के बराबर रह गया और संगीत छेत्र ने उसके मुकाबले काफी तरक्की कर ली है l इसका मूल कारण दोनों छेत्रों में लागत एवं प्रचार प्रसार की भूमिका महत्वपूर्ण है l आज जहाँ उत्तराखंड के ग्रामीण छेत्रों में सिनेमा हॉल का न होना तथा शहरों में हिंदी सिनेमा का बोलबाला फिल्मो के पतन की दशा को दर्शाता है वही दूसरी तरफ फिल्म की लागत न मिलने पर निर्माता भी फिल्म निर्माण से अपना हाथ पीछे खींच रहे हैं l वही दूसरी ओर संगीत छेत्र से जुड़े लोग अब सीधा यूटूब और अन्य सोशल मीडिया के जरिये अपने काम को देश विदेश तक दर्शकों को पहुचने में कामयाब हो गए हैं तो साथ ही कम लागत से बने गीतों को इस माध्यम से निर्माण लागत भी वसूलने में सफल हो रहे हैं l 
लेकिन कहते हैं कि सिक्के के दो पहलू होते हैं और दूसरा पहलू जानना भी बहुत जरूरी है, फिल्म जगत की इस हालत के जिम्मेदार काफी हद तक हमारे कलाकार भी हैं जिन्होंने फिल्म उद्योग को केवल संस्कृति के प्रचार का नाम दिया और इसके व्यसायीकरण के उपर ध्यान नहीं दिया l आज भी हर फिल्म के लिए हमें पहांड़ों पर जाना होता है कि लगे कि ये एक पहाड़ी फिल्म है l आज दक्षिण भारत की फिल्मों या अन्य राज्यों को देखे तो वो बहुत स्क्रिप्ट के अनुसार बहुत सारी फिल्मे देश के अन्य हिस्सों में यहाँ तक कि विदेशों में भी अपनी फिल्म की शूटिंग करते हैं और फिल्म को एक व्यवसाय के तौर पर लेकर उसका प्रचार प्रसार करते हैं l आज हमें यह बात समझनी होगी कि जब तक फिल्म मनोरंजक और तकनीकी रूप से मजबूत न हो तब तक हम अपनी फिल्मों से ज्यादा उम्मीद नहीं लगा सकते l आज हमारे सामने हिंदी फिल्मे एवं नाटक हमारे साथ प्रतियोगिता में खड़े हैं और दर्शक संस्कृति के साथ साथ मनोरंजन और गुणवत्ता भी चाहता है जो हमारी अधिकाँश फिल्मो में न होने पर दर्शक हिंदी सिनेमा की ओर आकर्षित हो रहा है l आज हमारे फिल्म जगत से जुड़े अधिकतर कलाकार शौकिया रूप में फिल्मों में काम कर रहे हैं और इस छेत्र में उन्होंने कोई प्रशिक्षण नहीं लिया जिससे फिल्मों की गुणवत्ता पर असर पड़ा है l साथ ही फिल्म निर्माण से जुड़े लोगों का फिल्म की मार्केटिंग पर बिलकुल ध्यान न देने से फिल्म पर लगी लागत को वसूलने में नाकाम रहे हैं l बहुत सी फिल्मे जो की बन कर तैयार है लेकिन उनका कोई खरीददार नहीं मिल रहा और बाद में उस फिल्म को होटल, बैंक्वेट हॉल पर दिखाने को मजबूर हो रहे हैं l हमारे सिनेकर्मियों का सरकार पर भी कोई ठोस दबाब नहीं है कि सरकार सिनेमा जगत के लिए कोई कारगार पालिसी बनाये l
आज उत्तराखंड का संस्कृति विभाग चंद लोगों की मुठ्टी में हैं और उसका भरपूर फायदा ले रहे हैं, वही सही संस्कृतिकर्मियों को इसका लाभ नहीं मिल पा रहा l फिल्म निर्माण की कोई ठोस सरकारी नीति नहीं है जिससे फिल्म जगत को कोई फायदा हो l 
आज तक बहुत से संगठन बने जिन्होंने दावा किया कि वो कलाकारों के लिए उनके हित में काम करेंगे लेकिन सच्चाई कुछ और ही बयाँ कर रही है l अधिकतर संगठन कलाकारों में गुटबाजी की भावना पैदा कर रहे हैं वहीँ सगंठन के नाम पर अपनी चांदी काट रहे हैं l लेकिन आज तक उन्होंने कलाकारों के लिए कोई ठोस नीति या प्रस्ताव पर काम नहीं किया और न ही कलाकार को इन संगठनो से कोई फायदा मिला l 
आज जरूरत है कलाकारों के ऐंसे ठोस गैर राजनितिक संगठन की जो कलाकारों के हित के लिए काम करें, ताकि संगठन से जुड़ने में कलाकार अपनी सुरक्षा का अनुभव करे l जो संगठन कलाकारों के हित के लिए जन आन्दोलनों के माध्यम से सरकार को मजबूर करे कि पर्यटन के बाद अगर रोजगार है तो फिल्म निर्माण का छेत्र है जहाँ बहुत से कलाकारों को प्रत्यक्ष या अप्रत्यक्ष रूप से रोजगार मिलेगा l संगठन को सरकार को मजबूर करना चाहिए कि फिल्म निर्माण को लघु उद्योग का दर्ज़ा दे तथा इस उद्योग के लिए सब्सिडी का प्रावधान दे ताकि यह एक उद्योग का रूप ले l  जो संगठन कलाकारों के शोषण को रोक सके और उनको वाजिब मेहनताना दिलाने के छेत्र में काम करे l आज इतने सारे कलाकार होने के बावजूद सभी नए कलाकारों की खोज में रहते हैं ताकि उनकी फ्री सेवा ली जा सके और इस कारण फिल्मों की गुणवता को ताक पर रखा जाता है l
आज जरूरत है ग्रामीण छेत्रों में सिनेमा हॉल, विडियो पारलर शुरू करने की ताकि फिल्मे असली दर्शकों तक पहुंचे l संस्कृति विभाग को और मज़बूत बनाये तथा विभाग को सिनेमा माध्यम से संस्कृति के प्रचार प्रसार वाली फिल्मो, उससे जुड़े कलाकारों को सम्मानित करे एवं उन्हें आर्थिक सहायता भी प्रदान करनी चाहिए ताकि इस छेत्र में अधिक काम करने को कलाकार प्रोत्साहित हों l
अगर हम वाकई में फिल्मो की इस दशा पर चिन्तित हैं तो सभी कलाकार फिल्म निर्माण के जिस भी छेत्र में काम कर रहे हैं उसमे उन्हें प्रयाप्त प्रशिक्षण प्राप्त हो और जहाँ तक हो सके फिल्मों की गुणवता से समझोता न करें l आज कोटद्वार में उत्तराखंड के श्रीदेव सुमन विश्वविद्यालय के अंतर्गत ट्रेनिंग इंस्टिट्यूट खुल चुका है और उत्तराखंड के युवा पीढ़ी जो कि कला छेत्र में अपना करियर बनाना चाहती है अब उसको बाहर जाने की जरूरत नहीं l किसी भी चीज़ के उत्पादन से पहले उसकी मार्केटिंग की व्यवस्था मजबूत होनी चाहिए l फिल्मो का जब तक व्यवसायीकरण नहीं होगा तब तक इस दिशा में सुधार की संभावनाए बहुत कम है क्योंकि हर किसी को कम से कम फिल्म पर लगी लागत तो वापस चाहिए ही l    

चंद्रकांत नेगी

Saturday, March 9, 2019

बड़े फिल्मकारों की पहली पसंद बनता जा रहा उत्तराखंड
या
फिल्मों के लिए स्वर्ग है उत्तराखंड की वादियां
नई फिल्म नीति से बढ़ी फिल्मों की शूटिंग और कारोबार
पिछले एक साल में 122 फिल्मों व टीवी सीरियल की हुई शूटिंग
देहरादून। शैलेन्द्र सेमवाल
उत्तराखंड बहुत कम समय में ही मुबंई के फिल्मकारों की नजर में सबसे लोकप्रिय शूटिंग डेस्टीनेशन बनता जा रहा है। हर दूसरे फिल्मकार की जुबां पर उत्तराखंड का ही नाम है। हर बड़ा फिल्मकार उत्तराखंड की वादियों में आकर फिल्मों की शूटिंग करना चाहता है। खास तौर पर उत्तराखंड और यहां के विषयों को लेकर फिल्में बनाई जा रही हैं। फिल्मों के किरदार यहां के लोगों को लेकर गढ़े जा रहे हैं। 
राज्य में शूटिंग के हिसाब से आधारभूत सुविधाओं के ढांचे को मजबूत करने की दिशा में जिस तेजी से काम हुआ है। उसका असर अब दिखाई देने लगा है। साल भर में कई बालीवुड फिल्मों की शूटिंग उत्तराखंड में हुई। इन फिल्मों में दिखाई जा रही लोकेशन को लेकर देश विदेश के पर्यटकों काफी उत्सुकता भी रही है। राइफल मैन जसवंत सिंह के जीवन पर आधारित 72 आवर्स, बत्ती गुल मीटर चालू, कबीर, बाटला हाउस, टोटल धमाल, स्टुडेंट ऑफ द ईयर, सोनू के टीटू की स्वीटी, संदीप एंड पिंकी फरार, करीब करीब सिंगल, शिवाय, जीनियस, परमाणु समेत और भी बहुत सी फिल्में इसका उदाहरण हैं। यहीं नहीं दक्षिण के अनेक फिल्मकार भी यहां शूटिंग को आ चुके हैं। दक्षिण के सुपरस्टार रजनीकांत, महेश बाबू, अलु अरविंद जैसे नाम देहरादून, मसूरी में अपनी फिल्मों की शूटिंग कर चुके हैं। शाहिद कपूर, सुशांत राजपूत, सारा अली खान, जान अब्राहम, टाइगर श्र्राफ ने भी अपनी फिल्मों की शूटिंग उत्तराखंड में हाल के समय में की है। राज्य सरकार की फिल्म पॉलिसी से नई फिल्मों की शूटिंग को उल्लेखनीय प्रोत्साहन मिला है। यहां फिल्मों की शूटिंग हुई तो तो इसका सीधा असर यहां के लोगों पर भी पड़ा है। न सिर्फ युवाओं को रोजगार मिला, बल्कि यहां के कलाकारों को भी इन फिल्मों में छोटे-बड़े किरदार कर अपने सपनों को पंख लगाने का बेहतरीन अवसर मिला है। पहली बार कोई मुख्यमंत्री फिल्मकारों के बीच सीधी बातचीत के लिए मुबंई, गोवा पहुंचा। जहां अनेक फिल्म समारोह में दिग्गज फिल्मकार जुटे। पिछले एक साल की बात करें तो दस बड़े प्रोडक्शन हाउस की बड़ी फिल्मों की शूटिंग उत्तराखंड में हुई है और इसके लिए उत्तराखंड को बेस्ट फिल्म फ्रेंडली स्टेट का नेशनल अवार्ड भी मिल चुका है। राजकुमार संतोषी, महेश भट्ट, सुभाष घई, इंद्रकुमार, रमेश सिप्पी, तिग्मांशु धूलिया, करण जौहर, अनिल शर्मा, जॉन अब्राहम, राकेश रोशन जैसे बड़े नाम उत्तराखंड में या तो फिल्म की शूटिंग कर चुके हैं या भविष्य में फिल्मों की शूटिंग की योजना बना रहे हैं। बाहुबली फेम एस राजमौली भी अपने अगले प्रोजेक्ट के लिए उत्तराखंड में लोकेशन तलाशने आ चुके हैं।

मिल रहे आगे बढ़ने के मौके
बड़े प्रोडक्शन हाउस की फिल्म यूनिट चार से छह सौ सदस्यों की होती है। यूनिट से जुड़ी टीमें अपने अपने काम के हिसाब से आती जाती रहती है। इसमें बड़े कलाकार भी शामिल हैं। उनके रहने के लिए अच्छे होटल, कैटरर्स, ट्रैवल एजेंसियां तो चाहिए होते हैं। इसके अलावा शूटिंग में स्क्रिप्ट के हिसाब से कब किस चीज की जरूरत पड़ जाए। उसके इंतजाम के लिए भी लोकल स्तर पर लाइन प्रोड्यूसर की जरूरत रहती है। देहरादून में ऐसे अनेक युवा हैं जो लाइन प्रोड्यूसर या लोकल कॉर्डिनेटर के रूप में सफलता पूर्वक काम कर रहे हैं। सुपरस्टार रजनीकांत जब मसूरी के क्यारकुली में शूटिंग कर रहे थे तो उन्हें एक खास परिधान में विवाह समारोह के दृश्य की शूटिंग के लिए बहुत सारे लोगों की जरूरत पड़ी। ये व्यवस्था तत्काल स्थानीय स्तर पर की गई। जितने भी लोगों ने इस शूटिंग में रजनी सर के साथ हिस्सा लिया उनके लिए ये एक बड़े सपने की तरह था। करन जौहर ने स्टुडेंट ऑफ द ईयर के दोनों पार्ट देहरादून में फिल्माए, इन फिल्मों के लिए स्थानीय कलाकारों व कालेज के छात्रों को छोटी-छोटी भूमिकाएं निभाने का मौका मिला। जहां भी फिल्म की शूटिंग चल रही होती है। वहां अपने चहेते स्टार को देखने के लिए प्रशंसकों का जमावड़ा जरूर लगता है। इससे उस जगह का कारोबार स्वत: बढ़ जाता है। बाहरी कारोबारियों की रूचि भी उत्तराखंड में होटल, रेस्टोरेंट खोलने व पर्यटन स्थलों में अन्य गतिविधियां में बढ़ी है। 
 
बेहतर नेटवर्क ने बढ़ाई फिल्म इंडस्ट्री तक पहुंच या कनेक्टिंग उत्तराखंड
उत्तराखंड खूबसूरत तो है ही लेकिन इस खूबसूरती को अब अच्छी नीतियों के कारण कैश किया जाना संभव हुआ है। राज्य सरकार की नई फिल्म नीति के कारण फिल्मकारों का ध्यान उत्तराखंड की ओर गया है। उत्तराखंड में जिस तेजी से रेल, सड़क, हवाई नेटवर्क बेहतर हुआ है उस तेजी से फिल्मों से जुड़ी गतिविधियां भी बढ़ी है। इसका सीधा सा सकारात्मक असर यहां के पर्यटन कारोबार पर पड़ा है। जब लोग फिल्मों में यहां की बेहतरीन लोकेशन को बड़े पर्दे पर देखते हैं तो जरूर उन जगहों में जाकर कुछ समय बिताने के ख्वाब देखते होंगे। उत्तराखंड में ऑलवेदर रोड पर तेजी से काम चल रहा है। इससे सड़क मार्ग पहले से बेहतर होगा। कई सारी रोपवे की परियोजनाओं पर काम हो रहा है। जॉलीग्रांट समेत पंतनगर, पिथौरागढ़, समेत अनेक जगहों में हवाई पट्टी के सुधारीकरण व वहां हवाई सेवाओं की शुरूआत ने उत्तराखंड के अंतिम कौने तक फिल्मकारों की पहुंच बढ़ा दी है। इससे उन जगहों पर भी पहुंचना आसान होगा। जहां तक शूटिंग के भारी उपकरण पहुंचाना मुमकिन नहीं था। हाल के समय में कुछ ऐसे दूसरे काम भी हुए हैं। जिससे ये माना जा सकता है कि उत्तराखंड में फिल्मकारों को कम खर्चे में अधिक समय तक शूटिंग करने को भरपूर प्रोत्साहन मिलेगा। ऋषिकेश-कर्णप्रयाग रेललाइन पर तेजी से काम चल रहा है। देहरादून-काठगोदाम के बीच नैनी-दून जनशताब्दी एक्सप्रेस दौड़ने लगी है। रुड़की-देवबंद रेललाइन का काम शुरू हो चुका है। रेल नेटवर्क के लिए केन्द्र सरकार ने उत्तराखंड में रेलवे को तीन गुना अधिक पैसा दिया है। उड़ान योजना के तहत देहरादून से पिथौरागढ़ और पंतनगर तक सस्ती उड़ानों का तोहफा मिला है। इसके अलावा देहरादून से देश के 23 शहरों तक सीधी उड़ान सेवा भी है। 

इन योजनाओं से भी मिली उत्तराखंड को मजबूती
इसके अलावा कुछ ऐसे काम भी हैं जिनका असर कहीं न कहीं उत्तराखंड में आने वाले फिल्मकारों व पर्यटकों को मिलने वाली सुविधाओं से जुड़ा है। जैसे सिटी गैस डिस्ट्रीब्यूशन प्रोजेक्ट के तहत हरिद्वार-देहरादून को पाईप्ड गैस लाइन का तोहफा मिला है। रुद्रपुर, काशीपुर के लोग इस योजना से लाभांवित हो रहे हैं। केदारनाथ धाम का पुनर्निमाण युद्ध स्तर पर चल रहा है। नमामि गंगे योजना से गंगा घाटों की देखरेख के लिए 600 करोड रूपये जारी हुए हैं। इनमें कई काम तो पूरे भी हो चुके हैं। कई घाटों की सुंदरता में चार चांद लग चुके हैं। जैविक खेती को बढ़ावा देने के लिए केन्द्र ने 1500 करोड रूपये जारी किए हैं। उज्जवला योजना से उत्तराखंड के ग्रामीण क्षेत्र की महिलाओं को राहत मिली है। सहकारिता में केन्द्र से सहकारिता विकास के लिए 3500 करोड रुपये मिले हैं। एक फिल्म यूनिट में सैकड़ों लोग होते हैं। जब एक फिल्म यूनिट किसी जगह कई दिनों की शूटिंग का पैकेज लेकर आती है तो यूनिट से जुड़े सदस्य राज्य में मिल रही सुविधाओं का सीधे तौर पर लाभ उठाते हैं। 

नई फिल्म नीति में बदलाव के बाद सरकार के दस बड़े कदमों से फिल्म सेक्टर में जान लौटने की उम्मीद की जा रही है।

सिनेमाघरों के लौटेंगे दिन-
प्रदेश के छह सौ मीटर से ऊपर के पर्वतीय क्षेत्रों में बंद हो चुके सिनेमाघरों को फिर से खोलने के लिए सरकार ने जीएसटी लागू होने की तिथि एक जुलाई 2017 से जमा किए गए एसजीएसटी की तीस प्रतिशत प्रतिपूर्ति का निर्णय लिया है।

एक रूपये प्रति टिकट निधि से-
सिनेमाघरों के टिकट पर एक रूपये प्रति टिकट की दर से फिल्म विकास निधि के रूप में लिया जाएगा। इस निधि का उपयोग उत्तराखंड व अन्य प्रदेश की भाषाई फिल्मों को अनुदान के रूप में किया जाएगा। इसी निधि से फिल्म पुरस्कार, फिल्मों के लिए अवस्थापना का विकास, फिल्मोत्सव, स्कॉलरशिप आदि दी जाएगी।

फिल्म प्रमाणीकरण परिषद-
क्षेत्रीय फिल्म प्रमाणीकरण परिषद का गठन होगा। इसमें उत्तराखंड में निर्मित फिल्म व क्षेत्रीय भाषा की फिल्मों को प्रमाणीकरण की सुविधा मिलेगी। 

क्षेत्रीय फिल्म दिखाना होगा अनिवार्य-
सिनेमा हॉलों में उत्तराखंड की क्षेत्रीय फिल्मों को व्यवसायिक शर्तों पर एक हफ्ते तक दिखाना अनिवार्य होगा।
  
राज्य में फिल्म बनाने पर टैक्स में छूट-
जिन फिल्मों की 75 फीसदी शूटिंग या आउटडोर शूटिंग का आधे से अधिक हिस्सा उत्तराखंड में शूट होगा। उन्हें गुण दोष के आधार पर एसजीएसटी लागू होने की तिथि से जमा किए गए एसजीएसटी में तीस फीसदी प्रतिपूर्ति सरकार करेगी।

75 फीसदी शूटिंग करने पर अनुदान
राज्य में यदि फिल्म का 75 फीसदी हिस्सा शूट किया जाता है तो गुण दोष के आधार पर ऐसी फिल्मों को अनुदान के लिए चुना जाएगा। इसमें फिल्म निर्माण की लागत का तीस फीसदी या फिर डेढ़ करोड रूपये तक का अनुदान शामिल है।

शूटिंग के लिए सिंगल विंडो-
उत्तराखंड के विभिन्न स्थानों पर शूटिंग को प्रोत्साहित करने के लिए जरूरी अनुमति को आसान करते हुए सिंगल विंडो सिस्टम लागू किया गया है। इसमें ऑनलाइन आवेदन की भी व्यवस्था का प्रावधान किया जा रहा है। सरकार के अन्य विभागों के स्तर पर कोई अन्य शुल्क नहीं लिया जाएगा। शूटिंग के लिए पांच पुलिसकर्मी निशुल्क उपलब्ध कराए जाएंगे। इससे अधिक संख्या होने पर निर्माता को ही खर्च उठाना होगा।

आवासीय फिल्म कांप्लेक्स-
सरकार पीपीपी मोड पर चुने हुए स्थानों पर आवासीय फिल्म कांप्लेक्स बनाएगी। जहां अत्याधुनिक सुविधाओं के साथ तकनीकी स्टॉफ के रहने की व्यवस्था रहेगी। फिल्म यूनिट सदस्यों के आने जाने के लिए लग्जरी बस, ढुलान वाहनों की व्यवस्था आउटसोर्स के जरिए की जाएगी।

वजीफा भी-
फिल्म एंड टेलीविजन इंस्टीट्यूट पुणे और सत्यजीत राय फिल्म एंड टेलीविजन इंस्टीट्यूट कोलकाता में प्रवेश लेने वाले राज्य के मूल निवासियों को हर साल 25 हजार का अधिकतम वजीफा दिया जाएगा।

निर्माता को एसजीएसटी की प्रतिपूर्ति
फिल्म निर्माण में एसजीएसटी लागू होने की तिथि से पांच साल तक जमा किए गए एसजीएसटी की प्रतिपूर्ति सरकार करेगी।

फिल्मों के लिए उत्तराखंड में इस समय सबसे अच्छा माहौल है। बत्ती गुल मीटर चालू के बाद महेश बाबू के साथ दक्षिण की फिल्म की है। इसके बाद एक और फिल्म की शूटिंग हम जल्द उत्तराखंड में करने जा रहे हैं। प्रमोद राणा, बत्ती गुल मीटर चालू के लाइन प्रोड्यूसर।
उत्तराखंड में अभी तक धर्मा प्रोडक्शन ने जितनी भी फिल्में शूट की है। उसमें हमारा अनुभव बेहद यादगार रहा है। हम बार बार उत्तराखंड आना चाहते हैं। ऐसी स्क्रिप्ट हो जिसमें जरा सा भी गुंजाइश हो तो हमें उत्तराखंड ही याद आता है। गोपाल बेबल, लाइन प्रोड्यूसर धर्मा प्रोडक्शन
 
शैलेन्द्र सेमवाल...hindustan. 9927573606 

उत्तराखंडी फिल्मों का संक्षिप्त इतिहास

उत्तराखंडी फिल्मों का संक्षिप्त इतिहास २०१३ तक                प्रस्तुतिकरण : भीष्म कुकरेती                     ( यह लेख उत्तराखंडी फिल्...