Thursday, February 8, 2018

आणां' या 'पखाणा

हमारे गांव के मशहूर ढोलवादक थे गोवर्धन भैजी। ढोलवादन के अलावा उन्हें हम 'आणां' और 'पखाणा' के लिये भी याद करते हैं। वह हर बात पर कोई नया 'ूर जानते होंगे। उन्हें यहां साझा करें। मैं यहां पर गढ़वाली के कुछ 'आणां—पखाणा' दे रहा हूं।
आणां' या 'पखाणा' फिट करने में माहिर थे। आणां और पखाणा मतलब पहेलियां और कहावतें, लोकोक्तियां। मुझे गढ़वाली के कुछ आणां—पखाणा याद हैं, लेकिन जगह, स्थान और बोली के हिसाब से इनमें बदलाव भी हो जाता है। आप उत्तराखंड में गढ़वाली, कुमांउनी, जौनसारी, जोहारी, भोटिया या किसी अन्य लोकभाषा से जुड़े हों तब भी अपने यहां की पहेलियों और लोकोक्तियों को आप जर
सूंगरूं दगड़ मांगळ — अज्ञानियों के साथ बहस
बिना मर्यां स्वर्ग नि जयेंदू — खुद काम किये बिना काम संपन्न नहीं होना
भैंसा क मुख पर फ्यूंल्या फूल — ऊंट के मुंह में जीरा
चोरो मन चंडाल — चोर की दाढ़ी में तिनका
जनि मयेड़ि वनि जयेड़ि — जैसा बाप वैसा बेटा
म्यारा बळदन उथगा बायी नी, जथगा खायी — कम काम का अधिक बखान
जैकु बाबू रिक्कन खायी, वू काळा मुड देखि भि डरद —दूध का जला छांछ भी फूंक फूंककर पीता है
अपणा गिच्चै बौराण — अपने मुंह मियां मिट्ठू बनना
औता तैं धन प्यारू — निसंतान को धन का मोह होना
भीतर जान्द न भैर आन्द, छजा माँ बैठी कि खुट्टा हिलान्द — निकम्मा
गरूड़ूवा घिंडुड़ा — अच्छे माता पिता की नालायक संतान
जोगि भाजी हगणै बटि — जिसके पास बहुत कम साधन हों
अ खुंड म्यार मुंड — खुद ही परेशानी मोल लेना
बड़ा गोरू बड़ा बछरा — शेरों का शेर
चोर गीज़ काखड़ी बटेक अर्र बाघ गीज़ बकरी बटेक — छोटी चोरी से बड़ी चोरी सीखना
जादा खाणौ जोगि ह्वै पैला बासा भुकि रै — अत्या​धिक लालच में खुद का नुकसान करना
कख राजा की राणी कख मंगतू की काणी — जमीन आसमान का अंतर
बांज बियाई अर गुबडि ह्वाई — कहना कुछ और करना कुछ
तिमला भि खतेन अर नांगा भि देखेन — इज्जत भी गयी और नुकसान भी हुआ
बुगलै बंदूक अर खिन्नै तलवार — दिखावा करना
छुईं लगान्द बल डाला टुक्कू कि — बेसिरपैर की बातें करना
अप्फु पर लपडयूं मोल हैका पर लपोडणू — खुद दलदल में फंसना और दूसरे को भी घसीटना
काणो क्या मंगद, बस द्वी आँखा — अंधे को क्या चाहिए दो आंखें
तुमरै भुज्याँ भट्ट चन छन — कर्मों का फल ?
दानै बछड़ा दांत नि गिणेंदा — मुफ्त के सामान में मीनमेख नहीं निकाली जाती
भैंसों गुस्सा मकड़ा पर — किसी शक्तिशाली के कृत्य की सजा कमजोर को देना
बोडी पैली गिताण छै अब त नाति​ जि व्हेगे — करैला और ऊपर से नीम चढ़ा
अड़ाई पड़ाई जाट सोळा दुनि आट — मूर्ख की कुछ समझ में नहीं आता
......धर्मेन्द्र पंत

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